Thursday, January 24, 2019

नेता बनी प्रियंका गांधी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ चल रहे केस

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी अब पार्टी में अहम जिम्मेदारी संभालने जा रही हैं. अभी तक राहुल गांधी के लिए पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाली प्रियंका अब पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाई गई हैं. उन्हें सक्रिय राजनीति में लाने की मांग कांग्रेस में लंबे अर्से से चली आ रही थी. लेकिन ठीक आम चुनाव से पहले पार्टी ने प्रियंका को मैदान में उतार दिया है. उनके आने से कांग्रेस पार्टी में भारी उत्साह बना हुआ है. लेकिन पति रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े मामले प्रियंका के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं.

वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आते ही गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के लिए परेशानी का दौर शुरू हो गया था. उनके खिलाफ कई मामले उजागर हुए. जिनमें हरियाणा के गुडगांव और राजस्थान के बीकानेर में लैंड डील के अलावा ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से जुड़े मामले और आयकर विभाग से संबंधित केस शामिल हैं. इन मामलों को लेकर हमेशा बीजेपी गांधी परिवार को घेरने की कोशिश करती रही. और कांग्रेस नेता उनके बचाव में खड़े होते रहे. हम आपको बताते हैं, रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े दो बड़े मामलों के बारे में.

कोलायात लैंड डील

यह मामला राजस्थान के बीकानेर जिले का है. जो कोलायात की एक लैंड डील से जुड़ा है. दरअसल, हुआ यूं कि सेना के लिए महाजन फील्ड फायरिंग रेंज बनाई गई थी. उसकी वजह से विस्थापित हुए लोगों के लिए सरकार ने एक जमीन का चुनाव किया. जो उन लोगों को बांटी जानी थी. लेकिन उसमें से 270 बीघा जमीन को पहले 79 लाख में खरीदा गया और बाद में उसी जमीन को 3 साल के भीतर पांच करोड़ में बेच दिया गया. जब ये मामला खुला तो इसमें गांधी परिवार के दामाद यानी प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा का नाम सामने आया. उनके दो पार्टनर आशोक कुमार और महेश नागर के नाम भी इस मामले में उजागर हुए. इसके बाद वहां के तहसीलदार ने भी इस संबंध में फर्जीवाड़े की शिकायत की. मामले के तूल पकड़ने पर PMLA के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने वर्ष 2015 में केस दायर किया. इसी मामले में 2017 के दौरान ईडी ने रॉबर्ट वाड्रा के करीबियों के यहां छापेमारी की कार्रवाई को अंजाम दिया. बीते साल 30 नवबंर को ठीक राजस्थान विधान सभा के चुनाव से पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ समन जारी करते हुए, उन्हें बीकानेर लैंड डील केस में पूछताछ के लिए भी बुलाया था.

हरियाणा जमीन घोटाला

गुडगांव और अन्य स्थानों पर जमीन की खरीद फरोख्त से जुड़े घोटाले में जब रॉबर्ट वाड्रा का नाम आया तो हडकंप मचना लाजमी था. इस मामले में बड़ी अनियमितता उजागर हुई. हरियाणा से कांग्रेस की हुड्डा सरकार के पतन के बाद ये मामला सत्ताधारी बीजेपी ने खूब उछाला. जांच बैठाई गई और आखिरकार 1 सितंबर 2018 को प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. उस मुकदमें में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा को भी नामजद किया गया. इस चर्चित घोटाले के संबंध में वाड्रा और हुड्डा के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 120बी, 467, 468 और 471 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. यही नहीं उन दोनों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 की धारा 13 के तहत भी कार्रवाई की गई. इस दौरान ED की टीम ने वाड्रा के कई ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की कार्रवाई की थी.

IAS अशोक खेमका ने किया था खुलासा

जब हरियाणा लैंड कंसोलिडेशन डिपार्टमेंट से आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की छुट्टी की गई तो उन्होंने चार्ज छोड़ने से ठीक पहले रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट कंपनी DLF के बीच हुए सौदे (म्यूटेशन) रद्द कर दिया था. इसकी वजह बताते हुए खेमका ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अगर निष्पक्ष जांच की जाए तो हरियाणा में की कांग्रेस शासनकाल के दौरान 20,000 करोड़ से 350 हजार करोड़ तक का लैंड घोटाला सामने आ सकता है. इन मामलों के उजागर होने पर बीजेपी समेत कई विरोधी दलों ने कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार को घेरने की कोशिश की थी. समय-समय पर रॉबर्ट से जुड़े मामलों को बीजेपी ने मुद्दा भी बनाया.

कई मामलों में आया था नाम

बीकानेर और गुड़गांव के अलावा, ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के मामले भी रॉबर्ट वाड्रा के लिए परेशानी का सबब बने. उनकी कंपनियों के लाइसेंस में अनियमितता पाई गई थी. इससे पहले, रॉबर्ट वाड्रा को आयकर विभाग ने 42 करोड़ रुपये की अज्ञात आय के मामले में भी नोटिस थमा दिया था. यह मामला वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटलिटी प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा था. इस कंपनी में रॉबर्ट की 99 फीसदी हिस्सेदारी है. यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2जी और CWG से जुड़े कुछ मामलों में भी वाड्रा का नाम उछला था.

हालांकि ऐसे कई मामले थे, जिनमें वाड्रा को क्लीन चिट मिल गई. इन सभी मामलों में रॉबर्ट और गांधी परिवार सीधे तौर पर बोलने से बचता रहा है. लेकिन अब प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आ जाने से ये मामले उनके लिए सियासी परेशानी के तौर पर सामने आएंगे. बीजेपी समेत विपक्षी दल रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ चल रहे मामलों को चुनाव में भी बड़ा मुद्दा बना सकते हैं. ऐसे में प्रियंका के लिए उनकी सियासी पारी की शुरूआत मुश्किलों भरी हो सकती है.

अमेरिकी अखबार का खुलासा

गौरतलब है कि जब 2014 में लोकसभा चुनाव चल रहे थे. ठीक उसी वक्त प्रतिष्ठित अमेरिकन अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक रिपोर्ट छापकर सनसनी फैला दी थी. उस रिपोर्ट में छपा था कि वर्ष 2007 में प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने महज 1 लाख रुपये से अपना कारोबार शुरू किया था. मगर साल 2012 तक उनकी जायदाद 300 करोड़ से भी ज्यादा हो गई थी. जबकि उस वक्त पूरी दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही थी.

Wednesday, January 16, 2019

'कूल' धोनी ने ऐसा क्या कर दिया कि ये VIDEO हो गया वायरल

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मौजूदा वनडे सीरीज में महेंद्र सिंह धोनी अपने पुराने रंग में लौट चुके हैं. एडिलेड में उन्होंने एक छोर संभाला और 54 गेंदों में नाबाद 55 रनों की पारी खेलकर भारत को छह विकेट से जीत दिला दी. जिससे टीम इंडिया ने तीन मैचों की सीरीज में 1-1 से बराबरी हासिल कर ली है, लेकिन मैच के दौरान बल्लेबाजी करते हुए 'कूल' धोनी आपा खोते नजर आए.

दरअसल, भारतीय पारी के दौरान खलील अहमद और युजवेंद्र चहल मैदान पर ड्रिंक्स लेकर आए थे. इस बीच खलील ने एक गलती कर दी. वह पिच पर दौड़ गए. इस पर धोनी गुस्से में आ गए और उन्होंने खलील को ऐसा न करने की नसीहत देते हुए 'कुछ ऐसा कहा' कि उनका वीडिया वायरल हो गया.

ऐसा पहली बार नहीं, जब पूर्व कप्तान धोनी मैदान पर अपने साथी खिलाड़ी पर भड़कने से सुर्खियों में आए. इससे पहले फरवरी 2018 में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 मैच के दौरान मनीष पांडे को 'डांट' लगाई थी.

तब हुआ यूं था कि मैच के आखिरी ओवर में धोनी स्ट्राइक पर थे, उन्होंने स्कोर बोर्ड की ओर देख रहे मनीष पांडे को डांट लगाई थी. उन्होंने मनीष पांडे से कहा था- ओए, उधर क्या देख रहा, इधर देख ले... धोनी का ये वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.

राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह की राजनीतिक तस्वीर फिलहाल बनी हुई है, उसमें कांग्रेस समेत विपक्ष में खड़े सभी क्षेत्रीय दल गठबंधन में चुनाव लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश में गठबंधन की घोषणा भी की जा चुकी है. इन्हीं सरगर्मियों के बीच दिल्ली में यह कयास लगाए गए कि क्या लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने प्रतिद्वंद्वी नई नवेली आम आदमी पार्टी से गठबंधन करेगी? सियासी गलियारे में इसकी सुगबुगाहट सुनने को मिली की कांग्रेस इस पर विचार कर सकती है. लेकिन सवाल है कि क्या कांग्रेस आम आदमी पार्टी से गठबंधन करेगी? उस आम आदमी पार्टी से, जो कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर चले आंदोलन की गर्भ से पैदा हुई है. भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन से न सिर्फ आम आदमी पार्टी पैदा हुई बल्कि विधानसभा चुनावों में उसने कांग्रेस को अर्श से फर्श पर ला खड़ा किया और पार्टी का कोई इकलौता उम्मीदवार विधायक नहीं चुना जा सका.

आम आदमी पार्टी से मिली सियासी चोट को दिल्ली की कमान संभाल चुके अजय माकन संभवतः बखूबी महसूस कर रहे होंगे. इसलिए वह आम आदमी पार्टी से गठबंधन के खिलाफ थे. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अपने राज्य में अरविंद केजरीवाल से दोस्ती को हरी झंडी दिखाने से मना कर चुके हैं. शीला दीक्षित भी इसके खिलाफ ही नजर आत रही हैं. ‘आजतक’ से एक बातचीत में वह कहती हैं, ‘कांग्रेस अपने आप में सक्षम है. हमें किसी से गठबंधन करने की कोई आवश्यकता नहीं है. आम आदमी पार्टी का जो रिकॉर्ड रहा है, वो हमें प्रेरित नहीं करता है. हमने कभी भी आम आदमी पार्टी का समर्थन नहीं किया. उसने हमारे खिलाफ चुनाव लड़ा.’

मगर कहा यह भी जाता है कि राजनीति में कुछ भी मुमकिन है क्योंकि यहां कोई स्थायी दुश्मन या स्थायी जैसी कोई चीज नहीं होती है. अगर ये सूरत बने कि दिल्ली में लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से गठबंधन करना पड़ जाए तो फिर सवाल होगा है कि विधानसभा चुनाव में क्या? क्या दोनों दल एक साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे? या फिर दोनों की राहें जुदा होंगी?

उम्र के इस पड़ाव पर कितनी कारगर होंगी दीक्षित

शीला दीक्षित ने 1998 में इससे पहले दिल्ली कांग्रेस की कमान संभाली थी. उस समय राजनीतिक हालात ऐसे बन गए थे कि पार्टी को लगातार विभिन्न चुनावों में शिकस्त का सामना करना पड़ रहा था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा, 1993 के विधान सभा और 1997 नगर निगम चुनावों में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था.

शीला दीक्षित की पुरानी प्रोफाइल को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें दिल्ली का नेतृत्व सौंपने का फैसला किया है. वह 15 वर्षों तक लगातार मुख्यमंत्री रहीं. इसी दौरान दिल्ली का पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर बदलने का श्रेय उन्हें दिया जाता है. अपने प्रशासनिक अनुभव की बदौलत उन्होंने आलाकमान को अपने पर दोबारा भरोसा दिलाया है. क्योंकि उनके कामकाज को लेकर कोई विवाद देखने को नहीं मिलता है. उन्हें एक बेहतर मैनेजर माना जाता है. अपने पुराने तजुर्बों को लेकर कॉन्फिडेंस से भरी नजर आती हैं. ‘आजतक’ के इस सवाल पर वह कहती भी हैं कि, ‘आलाकमान को लगता है कि मुझे दिल्ली का अनुभव है और यही कारण है कि उन्होंने नई दिल्ली कांग्रेस प्रमुख के लिए मुझे चुना.’

बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों का एकजुट होने का क्रम शुरू हो गया है. कांग्रेस महागठबंधन की पूरजोर तरफदारी कर रही है. वह बिहार में महागठबंधन खड़ा कर चुकी है. हालांकि शीला दीक्षित अपनी सियासी रणनीति का खुलासा नहीं कर रही हैं. दिल्ली में कांग्रेस के पास लोकसभा और विधानसभा में एक भी सीट नहीं है. इस स्थिति में अगले चुनाव की रणनीति पर वह कहती हैं कि, ‘दिल्ली में गठबंधन पर चर्चा चल रही है और जब वक्त आएगा तो पता चल जाएगा.’

Monday, January 7, 2019

किसे और कैसे मिलेगा लाभ? जानें सवर्ण आरक्षण से जुड़े हर सवाल का जवाब

नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को गरीब सवर्णों को आरक्षण देकर ऐतिहासिक निर्णय किया. लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया. विपक्ष ने सरकार के इस फैसले को सिर्फ एक चुनावी दांव बताया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी और सरकार ने इसे ऐतिहासिक कदम करार दिया है. अगर आपके मन में इस फैसले से जुड़े कुछ सवाल हैं तो जवाब आपको यहां मिलेंगे...

1.    सवर्णों को आरक्षण किसके हिस्से का मिलेगा?

मोदी सरकार ने गरीब सवर्णों को जो 10 फीसदी आरक्षण देने की बात कही है, यह आरक्षण अभी तक दिए जा रहे 50 फीसदी से अलग होगा. यानी, संविधान के अनुसार अभी तक सिर्फ 50 फीसदी आरक्षण दिया जाता है जो कि समाज के पिछड़े तबके को मिलता है. यानी सरकार ने सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला इससे अलग दिया है, इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा. 

2.    संविधान में प्रावधान नहीं है फिर कैसे मिलेगा?

मोदी सरकार इस फैसले को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करेगी. मंगलवार को ही लोकसभा में संविधान संशोधित बिल पेश किया जाएगा. केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में बदलाव करेगी. दोनों अनुच्छेद में बदलाव कर आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा.

3.    क्या सिर्फ हिन्दू सवर्णों को मिलेगा?

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि केंद्र सरकार के इस फैसले का लाभ हिंदू सवर्णों को मिलेगा. इस फैसले का लाभ हिंदुओं के अलावा मुस्लिम और ईसाई धर्म के लोगों को भी मिलेगा. उदाहरण के तौर पर अगर कोई मुस्लिम सामान्य श्रेणी में आता है और वह आर्थिक रूप से कमजोर है तो उसे 10 फीसदी आरक्षण का फायदा मिलेगा.

4.    पटेल-जाट-मराठा आंदोलन का अब क्या होगा?

बीते दिनों में पटेल-जाट-मराठाओं ने आरक्षण के लिए कई तरह के आंदोलन किए हैं. मोदी सरकार के फैसलों से इन्हें भी लाभ मिलेगा, क्योंकि ये सभी जातियां सवर्ण के अंतर्गत आती हैं. ऐसे में इन सभी जातियों को भी आर्थिक आधार पर 10 फीसदी का लाभ मिलेगा.

5.    किसे गरीब माना जाएगा और किसे नहीं?

मोदी सरकार ने इस फैसले के साथ ही कुछ शर्तें भी लागू कर दी हैं. इस फैसले के तहत जिनकी आय 8 लाख रुपये सालाना से कम हो उन्हें इस फैसले का लाभ मिलेगा, इसके अलावा जिसके पास 5 हेक्टेयर से कम की जमीन होगी उन्हें भी 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा.

जिन सवर्णों के पास 1000 स्क्वायर फीट से कम का घर होगा, जिनके पास निगम की 109 गज से कम अधिसूचित जमीन होगी, 209 गज से कम की गैर-अधिसूचित जमीन होगी और जो भी किसी आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते होंगे उन सभी को इसका लाभ मिलेगा.

6.    क्या कोर्ट में सरकार का ये दांव टिक पाएगा?

दरअसल, संविधान के अनुसार आरक्षण सिर्फ सामाजिक असमानता के आधार पर दिया जाता है यानी आर्थिक आधार पर मिलने वाला आरक्षण गैर-संवैधानिक है. कई राज्य सरकारों ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की कोशिश की है, लेकिन जब मामला कोर्ट में जाता है तो गैर-संवैधानिक होने के आधार पर खारिज कर दिया जाता गया है. ऐसे में केंद्र सरकार के सामने संविधान में संशोधन करने की चुनौती होगी.

7.    किन नौकरियों में ये आरक्षण मिलेगा, केंद्र-राज्य या निगमों की?

मोदी सरकार का ये लाभ सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में मिलेगा. मोदी सरकार का ये फैसला पूरे देश में लागू होगा, ऐसे में जिन क्षेत्रों में आरक्षण का प्रावधान है उसमें केंद्र-राज्य और निगम की नौकरी में इस फैसले का लाभ सीधे तौर पर मिलेगा.

8.    क्या राज्य भी दे सकेंगे ऐसा आरक्षण?

पिछले कुछ समय में राज्य सरकारों ने जब भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की कोशिश की है तो कोर्ट ने उसे गैरकानूनी करार दिया है. ऐसे में अगर अब इसको लेकर संविधान में संशोधन किया जाता है, तो फिर राज्य सरकारों के लिए 50 फीसदी से अलग आरक्षण देने का रास्ता खुल सकता है.