Monday, March 25, 2019

पिछली बार 10 सीटों पर नोटा का असर सबसे ज्यादा रहा, इनमें से 9 सीटें आदिवासी बहुल

नई दिल्ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा यानी ‘नन ऑफ द अबव’ का इस्तेमाल किया गया था। पिछले चुनावों में 83.41 करोड़ में से 55.38 करोड़ (66.4%) मतदाताओं ने 543 सीटों पर वोट डाले थे। इनमें से करीब 60 लाख वोट नोटा यानी ‘इनमें से कोई नहीं’ को पड़े थे। यह कुल वोटों का 1.1% था। 2014 में नोटा को सबसे ज्यादा 46,559 वोट तमिलनाडु की नीलगिरी सीट पर मिले थे, जबकि सबसे कम 123 वोट लक्षद्वीप सीट पर पड़े थे।

आदिवासी इलाकों पर नोटा को ज्यादा वोट मिले
2014 के आम चुनावों में जिन 10 सीटों पर नोटा का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा रहा, उनमें से 9 सीटें आदिवासी बहुल हैं। इनमें से भी 7 सीटें ऐसी थीं, जहां आदिवासियों की आबादी 50% से ज्यादा है। 

यूपी की मथुरा, अमेठी और फर्रुखाबाद उन 10 सीटों में शामिल हैं, जहां सबसे कम नोटा दबा। इन 10 सीटों में हरियाणा की हिसार और भिवानी-महेन्द्रगढ़ सीटें भी रहीं। इसके अलावा केन्द्र शासित तीन प्रदेशों में मतदाताओं ने सबसे कम नोटा दबाया।

543 लोकसभा सीटों में 293 सीटें ऐसी थीं, जिनपर नोटा टॉप-5 में था। वहीं, 44 सीटें ऐसी थीं, जहां नोटा तीसरे नंबर पर था। पिछले चुनावों में 502 सीटें ऐसी थी, जिनपर नोटा टॉप-10 में था।

2013 में मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का फैसला किया गया था। इसी साल छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा का विकल्प दिया गया। अब तक एक लोकसभा और कुल 37 विधानसभा चुनावों में नोटा का इस्तेमाल किया जा चुका है। 2013 से 2017 के बीच हुए चुनावों में नोटा को कुल 1.33 करोड़ वोट मिले।

नोटा को सबसे ज्यादा वोट, तब भी दूसरे नंबर वाला प्रत्याशी माना जाता है विजेता
नोटा को मिले वोटों को रद्द माना जाता है। यानी इसका चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ता। उदाहरण के तौर पर अगर किसी चुनाव में एक प्रत्याशी को 40 और दूसरे प्रत्याशी को 30 वोट मिले और नोटा को सबसे ज्यादा 100 वोट मिले, तो ऐसी स्थिति में भी नोटा के बाद सबसे अधिक वोट पाने वाले प्रत्याशी को विजय घोषित किया जाता है।

महाराष्ट्र और हरियाणा राज्य चुनाव आयोग ने पिछले साल लिए थे बड़े फैसले
महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने नवंबर 2018 में नोटा को ज्यादा वोट मिलने की स्थिति में स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों को फिर से कराए जाने का फैसला लिया था। आयोग ने नोटा को एक प्रत्याशी की तरह गिनने का फैसला किया था और इसे सबसे ज्यादा वोट मिलने पर सभी प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित करने की बात कही थी। नवंबर में ही हरियाणा राज्य चुनाव आयोग ने भी इसी तर्ज पर पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनाव में नोटा को ज्यादा वोट मिलने की स्थिति में दोबारा चुनाव कराने का फैसला लिया था।

नोटा को छत्तीसगढ़ में आप उम्मीदवारों से ज्यादा वोट मिले

2018 में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 85 उम्मीदवार उतारे। इन्हें 0.9% वोट मिले, जबकि नोटा को 2% वोट मिले। आप के अलावा भाकपा, सपा और राकांपा उम्मीदवारों का वोट शेयर भी नोटा से कम रहा।

इसी तरह मध्यप्रदेश में नोटा को 1.4% जबकि सपा को उससे कम 1.3% और आप को 0.7% वोट मिले। मप्र में 23 विधानसभा क्षेत्रों में नोटा को मिले वोटों की संख्या जीत के अंतर से ज्यादा थी। ऐसी 12 सीटों कांग्रेस, 10 पर भाजपा और एक पर अन्य को जीत मिली।

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में नोटा को 1.3% वोट मिले, जबकि सपा को 0.2%, आप 0.4% और रालोद को 0.3% मिले। राजस्थान में 16 विधानसभा सीटें ऐसी थीं जहां नोटा के वोट विनिंग मार्जिन से ज्यादा थे। इनमें से 8 सीटें भाजपा, 7 कांग्रेस और 1 अन्य को मिली।

Monday, March 18, 2019

राज्यपाल से मिलकर बोली कांग्रेस- गोवा में हम सबसे बड़ी पार्टी

मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के अंतिम संस्कार से पहले ही गोवा में सियासी घमासान शुरू हो गया है. भारतीय जनता पार्टी में जहां नए मुख्यमंत्री को लेकर मंथन चल रहा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस सरकार बनाने का दावा लेकर राजभवन पहुंच गई है. इस बीच नितिन गडकरी ने कहा कि मैं शाम 6 बजे दिल्ली वापस जा रहा हूं, इससे पहले ही मुख्यमंत्री पद के लिए फैसला लिया जाए तो अच्छा है. गडकरी ने कहा कि सीएम बीजेपी का ही होगा, हम सहयोगियों के संपर्क में हैं.

दूसरी तरफ कांग्रेस के सभी 14 विधायकों राजभवन जाकर राज्यपाल मृदुला सिन्हा से मुलाकात की. राजभवन से बाहर आकर नेता विपक्ष और कांग्रेस विधायक चंद्रकांत कावलेकर ने बताया कि हमने राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया है, क्योंकि कांग्रेस सबसे बड़ा दल है. चंद्रकांत ने बताया कि हमने राज्यपाल से सरकार बनाने का निमंत्रण देने की मांग करते हुए अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा है.

बता दें कि रविवार शाम गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का देहांत होने के बाद से ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी गोवा में डटे हुए हैं. वो लगातार विधायकों से बैठकें कर रहे हैं. एमजीपी के तीन विधायकों से गडकरी की मीटिंग हुई है. बताया जा रहा है कि एमजीपी हाईकमान  में चर्चा के बाद दोपहर करीब 3 बजे पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. सूत्रों के मुताबकि, बीजेपी की तरफ से गोवा विधानसभा के स्पीकर प्रमोद सावंत राज्य के नए मुख्यमंत्री हो सकते हैं.

पहले लिखा था पत्र

रविवार शाम मनोहर पर्रिकर का निधन होने के बाद ही देर रात गोवा प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने राज्यपाल को पत्र लिखकर सरकार बनाने का दावा पेश किया है. गोवा कांग्रेस ने इस पत्र में कहा है कि मनोहर पर्रिकर के देहांत से हम दुखी हैं.

पत्र में लिखा गया है कि गठबंधन दलों ने बीजेपी सरकार बनाने के लिए मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व की शर्त रखी थी. यानी राज्य के छोटे दल मनोहर पर्रिकर को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त पर ही बीजेपी के साथ आए थे. बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बीजेपी ने छोटे दलों व निर्दलीयों विधायकों की मदद से सरकार बनाई थी. हालांकि, इन छोटे दलों व निर्दलीयों ने विधायकों तभी बीजेपी को समर्थन दिया था, जब मनोहर पर्रिकर को सीएम बनाने की उनकी शर्त मान ली गई.

अब कांग्रेस ने गठबंधन शर्त का हवाला देते हुए राज्यपाल को बताया है कि बीजेपी के पास मौजूदा स्थिति में कोई घटक दल नहीं है. पार्टी ने अपने पत्र में सीटों का आंकड़ा भी दिया. पत्र में बताया कि फिलहाल कांग्रेस के पास 14, बीजेपी के पास 11, गोवा फॉर्वर्ड के पास 3, एमजीपी के पास 3, निर्दलीय 3,  एनसीपी 1 और एक स्पीकर हैं. ये आंकड़ा देते हुए कांग्रेस ने राज्यपाल से मांग की है कि कांग्रेस को सरकार बनाने का न्योता दिया जाए.

ये है गोवा का नंबर गेम

गोवा विधानसभा में कुल 40 सीटें हैं. इनमें से तीन सीटें पहले ही खाली पड़ी हुई थीं, जहां 23 अप्रैल को उपचुनाव होने हैं. अब मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद एक और सीट खाली हो गई है. यानी अब सदस्यों की कुल संख्या स्पीकर समेत 36 बची है. ऐसे में फिलहाल बहुमत के लिए 19 सीटों की आवश्यकता है.

मौजूदा गणित के लिहाज के बीजेपी सरकार के पास कुल 21 विधायक हैं. इनमें 12 बीजेपी, 3 एमजीपी, 3 जीएफपी और 3 निर्दलीय हैं. वहीं कांग्रेसी खेमे में उसके अपने 14 और एक एनसीपी विधायक है. यानी कांग्रेस के पास 15 सदस्य हैं. हालांकि, ये समीकरण उस स्थिति में जब बीजेपी के सभी सहयोगी उसके साथ बने रहें. चर्चा ये भी है कि मनोहर पर्रिकर के न होने पर अब क्षेत्रीय दल बीजेपी को समर्थन पर पुनर्विचार कर सकते हैं.

कांग्रेस भी यही दावा कर रही है. उनका कहना है कि बीजेपी को जिन दलों ने समर्थन दिया था वो मनोहर पर्रिकर के मुख्यमंत्री होने की शर्त पर था. लेकिन अब उनका दुर्भाग्यपूर्ण देहांत हो गया. ऐसे में कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर दिया जाए.

Friday, March 15, 2019

सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेटर श्रीसंत पर लगा आजीवन प्रतिबंध रद्द किया

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2013 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की अनुशासनात्मक समिति के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें क्रिकेटर एस श्रीसंत पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया था। अदालत ने बीसीसीआई की अनुशासनात्मक समिति से कहा है कि वह तीन महीने के भीतर श्रीसंत को दी जाने वाली सजा की अवधि को लेकर पुनर्विचार करे।

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस केएम जोसेफ वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बीसीसीआई से कहा कि श्रीसंत को दी गई सजा की अवधि पर वह नए सिरे से फैसला ले। वह यह काम तीन महीने के भीतर पूरा कर ले।

फैसला का दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मामले पर असर नहीं पड़ेगा : सुप्रीम कोर्ट

बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि उसके इस फैसले से दिल्ली हाई कोर्ट में श्रीसंत के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही के मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत के उस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में श्रीसंत समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था।

मैं मैदान पर वापसी को तैयार : श्रीसंत

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद श्रीसंत ने कहा, ‘सिलेक्शन वगैरह चयनकर्ताओं पर निर्भर है। अभी बहुत लाइफ बाकी है तो जय माता दी। बहुत बार ऐसा हुआ है कि खिलाड़ियों को इंजरी हुई है। मैं ऐसा सोचूंगा कि मेरे साथ बड़ी इंजरी थी। अगर लिएंडर पेस जैसे महान खिलाड़ी 40-45 की उम्र में खिताब जीत सकते हैं तो मैं भी वापस खेल सकता हूं। क्रिकेट में भी आशीष नेहरा ने 38 साल की उम्र तक खेला, मैं भी अभी 36 साल का हूं। मेरी प्रैक्टिस जारी है। मैं मैदान पर लौटने को तैयार हूं।’

सीओए बैठक में इस पर विचार करेंगे : विनोद राय

इस मामले में बीसीसीआई की प्रशासकों की समिति (सीओए) के प्रमुख विनोद राय ने कहा, ‘मैंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में सुना है। हमें आदेश की कॉपी मिलने की जरूरत है। हम निश्चित तौर पर सीओए की बैठक में इस मुद्दे को उठाएंगे।’ एंटी-डोपिंग पॉलिसी को लेकर सीओए की 18 मार्च को इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) के पदाधिकारियों के साथ एक बैठक होनी है। माना जा रहा है कि उस दिन बैठक में यह मामला भी उठ सकता है।

मुझे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला : श्रीसंत

दिल्ली पुलिस ने मई 2013 में स्पॉट फिक्सिंग मामले में कथित संलिप्तता के चलते श्रीसंत को गिरफ्तार किया था। श्रीसंत तब आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स की ओर से खेल रहे थे। उनके साथ उनकी टीम के साथी अंकित चह्वाण और अजीत चंदेलिया की भी गिरफ्तारी हुई थी। तीनों के खिलाफ महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) के तहत मामला दर्ज किया गया था। बाद में बीसीसीआई ने तीनों पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया। श्रीसंत ने सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दलील दी थी कि बीसीसीआई की ओर से गठित जांच समिति ने उन्हें अपना पक्ष रखे बिना ही बोर्ड को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप दी थी। 

2015 में निचली अदालत से बरी हुए थे श्रीसंत
निचली अदालत ने 2015 में श्रीसंत को कथित स्पॉट फिक्सिंग में आपराधिक मामले से बरी कर दिया था। हालांकि, अक्टूबर 2017 में केरल हाई कोर्ट ने श्रीसंत पर लगाए गए आजीवन प्रतिबंध को बहाल कर दिया। श्रीसंत ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के उसी फैसले को चुनौती दी थी। श्रीसंत ने अपनी अर्जी में निचली अदालत के फैसला का हवाला देते हुए कहा है कि बीसीसीआई की ओर से उन पर लगाया गया आजीवन प्रतिबंध बहुत कठोर फैसला है। ऐसा भी कोई सबूत नहीं है कि जिससे यह साबित हो पाए कि वे किसी अवैध गतिविध में लिप्त थे।

Monday, March 11, 2019

आम आदमी पार्टी ने सवाल उठाए तो आयोग ने कहा- मुख्य त्योहारों के दिन नहीं रखी वोटिंग

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव रमजान के बीच कराए जाने पर उठ रहे सवालों के बीच चुनाव आयोग ने कहा है कि शुक्रवार और मुख्य त्योहारों के दिन वोटिंग नहीं रखी गई है। इससे पहले कुछ राजनीतिक पार्टियों और मुस्लिम धर्मगुरुओं ने चुनाव आयोग और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए। आप नेता संजय सिंह और विधायक अमानतुल्लाह खान ने कहा कि रमजान में मुस्लिम वोट कम होगा और इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। टीएमसी नेता ने भी रमजान में मतदान का विरोध किया।

वहीं, एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि रमजान के दौरान मुस्लिम बाकी सभी काम करते हैं, इसी तरह वे चुनाव में भी हिस्सा लेंगे और पवित्र महीने में ज्यादा मतदान होगा।

आयोग ने जानबूझ कर रमजान के महीने में मतदान रखा- आप

आप सांसद संजय सिंह ने ट्वीट किया, "चुनाव आयोग मतदान में हिस्सा लेने की अपील के नाम पर करोड़ों खर्च कर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ 3 फेज का चुनाव पवित्र रमजान के महीने में रख कर मुस्लिम मतदाताओं की भागीदारी कम करने की योजना बना दी है। सभी धर्मों के त्योहारों का ध्यान रखो मुख्य चुनाव आयुक्त साहेब।''

अमानतुल्लाह ने ट्वीट किया, "12 मई का दिन होगा, दिल्ली में रमजान होगा। मुसलमान वोट कम करेगा, इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा।''

तीन राज्यों में मुस्लिम आबादी ज्यादा- तृणमूल नेता
तृणमूल नेता और कोलकाता मेयर फिरहाद हाकिम ने कहा, चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है, हम उसका सम्मान करते हैं। हम उसके खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहते, लेकिन उप्र, बिहार और बंगाल में 7 चरणों में चुनाव लोगों के लिए मुश्किल भरा होगा, खासकर उनके लिए जो रमजान के महीने में रोजा रखेंगे। इन तीन राज्यों में अल्पसंख्यकों की संख्या ज्यादा है। भाजपा नहीं चाहती कि मुस्लिम मतदान न करें। हमें चिंता नहीं है, लोग "भाजपा हटाओ, देश बचाओ' के प्रति सजग हैं।

मुसलमानों को परेशानी होगी- मौलाना खालिद रशीद फिरंगी
लखनऊ ईदगाह के इमाम और शहरकाजी मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने भी चुनावों की इन तारीखों पर सवाल खड़े किए। फिरंगी महली ने कहा, "चुनाव आयोग ने उप्र में 6,12 और 19 को भी वोट डालने का कहा है। जबकि 5 मई की रमजान का चांद दिख सकता है, 6 से रमजान का महीना शुरू होगा। तीनो तारीखें रमजान के महीने में पड़ेंगी जिससे मुसलमानों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।'

हार के डर से अभी से बहाना ढूंढने लगा है विपक्ष- मौर्य

भाजपा नेता और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और संवैधानिक संस्था है। रही बात रमजान में वोटिंग की तो आयोग ने मतदान के लिए 8 घंटे का समय रखा है। इस बीच कभी भी जाकर मतदान किया जा सकता है। विपक्षी दल चुनाव में हार के डर से अभी से बहाने ढूंढने लगे हैं।

भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि हिंदू भाई भी व्रत करते हैं, वे भी तो मतदान करते हैं। रोजा रखने वाले कई लोग ऑफिस जाते हैं, अपना काम करते हैं, यह पहला मौका नहीं है कि जब रमजान में मतदान हो रहा है। इस पर सवाल नहीं उठाने चाहिए।

यह विवाद गैर-जरूरी
ओवैसी ने कहा, यह पूरा विवाद गैर-जरूरी है। उन्होंने कहा, मैं राजनीतिक पार्टियों से अनुरोध करता हूं कि मुस्लिमों समुदाय और रमजान का इस्तेमाल न करें, भले ही आपकी कोई मजबूरी हो। मुस्लिम रमजान में रोजा जरूर रखेंगे और वे सामान्य जीवन जीते हैं, वे ऑफिस जाते हैं। यहां की गरीब से गरीब भी रमजान में रोजा रखता है। मेरा मानना है कि रमजान के पवित्र महीने में मतदान प्रतिशत बढ़ेगा।

Tuesday, March 5, 2019

भारत से बाहर वर्ल्ड कप कराने के लिए आईसीसी स्वतंत्र, लेकिन नतीजों के लिए तैयार रहे

मुंबई. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के एक पदाधिकारी ने मंगलवार को साफ कहा कि इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) 2021 टी-20 वर्ल्ड कप या 2023 वनडे वर्ल्ड कप जैसी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताएं भारत से बाहर कराने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन उसे इसके बाद की परिस्थितियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

हाल ही में दुबई में आईसीसी की तिमाही बैठक हुई थी। इसमें आईसीसी ने बीसीसीआई से कहा था कि 2021 टी-20 वर्ल्ड कप और 2023 वनडे वर्ल्ड कप जैसी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताएं कराने के लिए उसे 2.10 करोड़ डॉलर (करीब 149 करोड़ रुपए) के टैक्स की भरपाई करनी होगी।

बाहरी दबाव से नहीं सुलझेगा टैक्स का मामला : बीसीसीआई

इस संबंध में पदाधिकारी ने कहा, ‘आईसीसी की इच्छा है तो वह टूर्नामेंट को भारत से बाहर कराने के लिए स्वतंत्र है, क्योंकि कर संबंधी मामलों के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत है। इसमें बाहरी दबाव का कोई असर नहीं पड़ेगा।’ उन्होंने कहा, ‘हम इस मामले में टैक्स डिपार्टमेंट और मंत्रालय के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। हम अपने देश में वर्ल्ड कप कराना चाहते हैं, लेकिन यदि आईसीसी जबरदस्ती का दबाव बनाने चाहती है तो फिर उन्हें हर चीज के लिए तैयार रहना चाहिए।’

बीसीसीआई अपने राजस्व में आईसीसी को हिस्सा नहीं देगा

उन्होंने कहा, ‘यदि वे आईसीसी के टूर्नामेंट को भारत से बाहर ले जाने के इच्छुक हैं, तो यह अच्छी बात है। लेकिन तब बीसीसीआई अपने राजस्व की हिस्सेदारी से आईसीसी को बाहर कर देगा। तब देखते हैं कि कौन घाटे में रहेगा। पदाधिकारी ने रेखांकित किया, ‘प्रशासनिक प्रभारी अपने अधिकार क्षेत्र के बिना नीतिगत फैसले लेने की कोशिश कर रहे हैं। आईसीसी को उन फैसलों के लिए बीसीसीआई को रोकना मुश्किल होगा, क्योंकि इन फैसलों पर बोर्ड की मुहर नहीं लगी है।’

आईसीसी की बीसीसीआई के हित पर चोट पहुंचाने की मंशा

बीसीसीआई के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि आईसीसी विस्तृत सोच का दावा तो करता है, लेकिन भारत के हित को चोट पहुंचाने के हरसंभव मौके की ताक में रहता है। उन्होंने कहा, ‘पहले भी देखा गया है कि आईसीसी ने विभिन्न सदस्य बोर्डों से अलग-अलग तरह के करार किए हैं। उदाहरण के तौर पर, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया को कर में छूट हासिल करने के लिए सिर्फ सर्वोत्तम प्रयास की जरूरत थी, जबकि बीसीसीआई को कर छूट सुनिश्चित करने की जरूरत थी।’

2016 टी-20 वर्ल्ड कप में आईसीसी को कर में छूट नहीं मिली थी
आईसीसी को विश्वस्तरीय टूर्नामेंट के आयोजन के लिए सदस्य देशों से टैक्स में छूट मिलती है, लेकिन 2016 में भारत में हुए टी-20 वर्ल्ड कप के लिए उसे टैक्स में कोई छूट नहीं दी गई, भारतीय कर कानून इस तरह की कोई भी छूट नहीं देते हैं। संयोग से भारत से फॉर्मूला वन रेस के हटने के कारणों में से टैक्स में छूट नहीं मिलना भी शामिल था।