Monday, March 25, 2019

पिछली बार 10 सीटों पर नोटा का असर सबसे ज्यादा रहा, इनमें से 9 सीटें आदिवासी बहुल

नई दिल्ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा यानी ‘नन ऑफ द अबव’ का इस्तेमाल किया गया था। पिछले चुनावों में 83.41 करोड़ में से 55.38 करोड़ (66.4%) मतदाताओं ने 543 सीटों पर वोट डाले थे। इनमें से करीब 60 लाख वोट नोटा यानी ‘इनमें से कोई नहीं’ को पड़े थे। यह कुल वोटों का 1.1% था। 2014 में नोटा को सबसे ज्यादा 46,559 वोट तमिलनाडु की नीलगिरी सीट पर मिले थे, जबकि सबसे कम 123 वोट लक्षद्वीप सीट पर पड़े थे।

आदिवासी इलाकों पर नोटा को ज्यादा वोट मिले
2014 के आम चुनावों में जिन 10 सीटों पर नोटा का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा रहा, उनमें से 9 सीटें आदिवासी बहुल हैं। इनमें से भी 7 सीटें ऐसी थीं, जहां आदिवासियों की आबादी 50% से ज्यादा है। 

यूपी की मथुरा, अमेठी और फर्रुखाबाद उन 10 सीटों में शामिल हैं, जहां सबसे कम नोटा दबा। इन 10 सीटों में हरियाणा की हिसार और भिवानी-महेन्द्रगढ़ सीटें भी रहीं। इसके अलावा केन्द्र शासित तीन प्रदेशों में मतदाताओं ने सबसे कम नोटा दबाया।

543 लोकसभा सीटों में 293 सीटें ऐसी थीं, जिनपर नोटा टॉप-5 में था। वहीं, 44 सीटें ऐसी थीं, जहां नोटा तीसरे नंबर पर था। पिछले चुनावों में 502 सीटें ऐसी थी, जिनपर नोटा टॉप-10 में था।

2013 में मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का फैसला किया गया था। इसी साल छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा का विकल्प दिया गया। अब तक एक लोकसभा और कुल 37 विधानसभा चुनावों में नोटा का इस्तेमाल किया जा चुका है। 2013 से 2017 के बीच हुए चुनावों में नोटा को कुल 1.33 करोड़ वोट मिले।

नोटा को सबसे ज्यादा वोट, तब भी दूसरे नंबर वाला प्रत्याशी माना जाता है विजेता
नोटा को मिले वोटों को रद्द माना जाता है। यानी इसका चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ता। उदाहरण के तौर पर अगर किसी चुनाव में एक प्रत्याशी को 40 और दूसरे प्रत्याशी को 30 वोट मिले और नोटा को सबसे ज्यादा 100 वोट मिले, तो ऐसी स्थिति में भी नोटा के बाद सबसे अधिक वोट पाने वाले प्रत्याशी को विजय घोषित किया जाता है।

महाराष्ट्र और हरियाणा राज्य चुनाव आयोग ने पिछले साल लिए थे बड़े फैसले
महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने नवंबर 2018 में नोटा को ज्यादा वोट मिलने की स्थिति में स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों को फिर से कराए जाने का फैसला लिया था। आयोग ने नोटा को एक प्रत्याशी की तरह गिनने का फैसला किया था और इसे सबसे ज्यादा वोट मिलने पर सभी प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित करने की बात कही थी। नवंबर में ही हरियाणा राज्य चुनाव आयोग ने भी इसी तर्ज पर पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनाव में नोटा को ज्यादा वोट मिलने की स्थिति में दोबारा चुनाव कराने का फैसला लिया था।

नोटा को छत्तीसगढ़ में आप उम्मीदवारों से ज्यादा वोट मिले

2018 में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 85 उम्मीदवार उतारे। इन्हें 0.9% वोट मिले, जबकि नोटा को 2% वोट मिले। आप के अलावा भाकपा, सपा और राकांपा उम्मीदवारों का वोट शेयर भी नोटा से कम रहा।

इसी तरह मध्यप्रदेश में नोटा को 1.4% जबकि सपा को उससे कम 1.3% और आप को 0.7% वोट मिले। मप्र में 23 विधानसभा क्षेत्रों में नोटा को मिले वोटों की संख्या जीत के अंतर से ज्यादा थी। ऐसी 12 सीटों कांग्रेस, 10 पर भाजपा और एक पर अन्य को जीत मिली।

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में नोटा को 1.3% वोट मिले, जबकि सपा को 0.2%, आप 0.4% और रालोद को 0.3% मिले। राजस्थान में 16 विधानसभा सीटें ऐसी थीं जहां नोटा के वोट विनिंग मार्जिन से ज्यादा थे। इनमें से 8 सीटें भाजपा, 7 कांग्रेस और 1 अन्य को मिली।

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