Wednesday, February 13, 2019

बंद होने जा रही है BSNL? सरकार ने कंपनी से मांगी रिपोर्ट!

भारत सरकार की टेलीकॉम विंग बीएसएनल बंद होने के कगार पर है? देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में से एक बीएसएनल नुकसान में चल रही है. रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने कंपनी से सभी ऑप्शन तलाशने को कहा है. इनमें कंपनी को बंद करने का भी ऑप्शन है. कुल मिला कर रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर सभी ऑप्शन्स फेल होते हैं तो मुमकिन है बीएसएनल को बंद करना पड़े या सरकार इसे बेच दे.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार बीएसएनल को दिया गया ये आदेश, कंपनी के आला अधिकारी और टेलीकॉम सेकरेटरी अरूण सुंदरराजन की मुलाकात के बाद आया है. रिपोर्ट के मुताबिक बीएसएनल के चेयरमैन अनुपम श्रीवास्तव ने इस मीटिंग में कंपनी के मौजूदा आर्थिक हालात के बारे में बातचीत की है. इसमें कंपनी को हुए नुकसान और जियो की एंट्री से पड़े प्रभाव के बारे में बातचीत की गई हैं.

सरकार के अधिकारियों ने बीएसएनल से एक नोट तैयार करने को कहा है कि अगर बिजनेस बंद हो जाएगा तो क्या होगा. दूसरे ऑप्शन के तौर पर सरकार बीएसएनल के रिवाइवल के लिए इसका विनिवेश कर सकती है. बीएसएनल को इन सभी ऑप्शन्स पर कॉम्पैरिटिव अनालिसिस जमा करने को कहा गया है.

गौरतलब है कि बीएसएनल भारत में, लैंडलाइन और ब्रॉडबैंड सर्विस सहित बैंडविथ का बिजनेस करती है. इसने 2016-17 में 4,793 करोड़ रुपये का नुकसान दिखाया है. हालांकि अब तक 2017-18 की आर्थिक स्थिति नहीं बताई गई है. पिछले तीन साल से लगातार बीएसएनल नुकसान में है. डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइजेज द्वारा जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक बीएसएनल को ‘Incipient Sick’ घोषित किया गया है.

बीएसएनल के एक प्रवक्ता ने TOI को बताया है, ‘बीएसएनल ने सरकार से कहा है कि मार्केट में ‘कट थ्रोट’ कॉम्पटीशन के अलावा कंपनी बढ़ती उम्र वाले ज्यादा कर्मचारियों की वजह से मुश्किल में है. अगर 2019-20 से रिटायरमेंट की आयु कम दी जाती है तो बिल में लगभग 3,000 करोड़ रुपये की बचत होगी’

पिछले कुछ सालों से बीएसएनल का स्ट्रगल ज्यादा बढ़ गया है. इसकी वजह मार्केट में जियो की आमद है. जियो के साथ ही लगभग सभी प्राइवेट कंपनियों ने अपने प्लान सस्ते कर दिए. कई कंपनियां मर्ज हो गईं, कुछ कंपनियां बाजार से साफ हो गई और ऐसे में मार्केट में बने रहने के लिए बीएसनएल ने भी अपने प्लान को रिलायंस जियो से मैच किया है. हालांकि बीएसएनल पिछले कुछ साल में दूसरे कंपनियों के मुकाबले 4G अपग्रेड में फेल रही है और फाइबर सर्विस देने में भी कंपनी ने दूसरों के मुकाबले कुछ देरी कर दी है.

हालांकि अभी फैसला नहीं हुआ है कि गुर्जर इस बात पर राजी होकर रेलवे ट्रैक और हाईवे से उठ जाएंगे, क्योंकि पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत ने 2015 में गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण दिया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी. उसके बाद वसुंधरा सरकार आई तो 2017 में गुर्जरों को आरक्षण दिया गया. उस पर भी राजस्थान हाई कोर्ट ने रोक लगा दी. राजस्थान सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई है और वहां पर सुनवाई चल रही है.

50 से ज्यादा फीसदी तक आरक्षण नहीं
इस बीच 2018 में कांग्रेस की सरकार फिर से आ गई और गुर्जर फिर से आरक्षण की मांग को लेकर पटरी पर बैठ गए. अशोक गहलोत ने समाधान का वही तरीका निकाला और एक बार फिर से 2019 में गुर्जरों को आरक्षण देने का विधानसभा में पारित करवा दिया. राजस्थान विधानसभा में गुर्जरों का आरक्षण विधेयक पारित तो होता है, लेकिन हर बार अटक जाता है. कोर्ट का कहना है कि आरक्षण की कुल सीमा 50 से ज्यादा नहीं हो सकती है, लिहाजा गुर्जरों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.

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